गोंडवानालैंड

 आदिवासी होने का गर्व (indigenous people)

*गोंडवाना की यह जानकारी सभी सगा को बताने का कष्ट करें*

1)गोंडवाना के धर्म गुरु कौन हैं ?

उ–पहांदी पारी कूपर लिंगो

प्र–2)गोंडवाना के आराध्य कौन हैं ?
उ–फड़ापेन
प्र–3)गोंडवानात में कितने लिंगो हुए  हैं?
उ–88 लिंगो
प्र–4)गोंडवाना के निवासी कौन से धर्म मानते हैं ?
उ–गोंडी धर्म
प्र–5)गोंडवाना के मुख्य संस्कृति को क्या कहते हैं ?
उ–कोया संस्कृति
प्र–6)गोंडवाना के मूल निवासियों की मातृ भाषा कौन सी है?
उ–गोंडी भाषा
प्र–7)गोंडवाना के धर्म चिन्ह बताएँ ?
उ–सल्ले–गांगरा
प्र–8)गोंडवाना के राज्य चिन्ह बताएँ ?
उ–गज पर सवार सिंह
प्र–9)कछारगढ़ कौन से पर्वत श्रंखला में स्थित है ?
उ–सतपुड़ा पर्वत श्रंखला
प्र–10)कछारगढ़ को गोंडी में क्या पुकारा गया है ?
उ–काची कोपा लोहागढ
प्र–11)पावन भूमि कोयापुनेम गोंडी
धार्मिक तीर्थ धाम कहाँ स्थित है ?
उ–काची कोपाड कछारगढ़
प्र–12)कछारगढ़ का जात्रा मेला कौन से महिने में लगता है ?
उ–माघ महिना के पुर्णिमा को
प्र–13)धर्म माता रायतोड़ जंगो का स्थान कहाँ स्थित है ?
उ–कोयली कछारगढ़ ।
प्र–1) तैंतिस करोड़ देवों (पेनों ) की माता कौन है ?
उ–माता काली कंकाली
प्र–15)महान संगीतज्ञ वादक का नाम क्या है ?
उ–हीरा सुका
प्र–16)गोंडी धर्म के महामन्त्र क्या है ?
उ–जय सेवा मन्त्र
प्र–17)गोंडीयन धर्मिक मान्यता किसपर आधारित है ?
उ–प्रकृति सिद्ध व् प्रकृति शक्ति पर
प्र–18)गोंडवाना के प्रथम आदिगुरु कौन हैं ?
उ–आदि देव शंम्भु शेक
प्र–19)गोंडवाना राज्य के झण्डा को क्या कहते हैं ?
उ–सप्तरंगी झण्डा
प्र–20)गोंडवाना के शुभ अंक।    
  उ-  750
प्र –21)गोड की क्या पहचान है  
  उ-पीला गमचा गले डलो वही पहचान है                                
 *जय सेवा*   *जय बडादेव।*


Gondwana is a region of India, named after the Gondi people who live there (though they can also be found in other parts of India). The name of the ancient continent of Gondwanaland was derived from Gondwana, because some of the earliest rock formations of this continent were first investigated in part of the region, in modern Odisha.
As Gondi people are spread widely across central India, and are a minority almost everywhere, there is no unambiguous boundary to the region. However, the core region can be considered to be the eastern part of the Vidarbha region of Maharashtra, the parts of Madhya Pradesh immediately to the north of it, and parts of the west of Chhattisgarh. The wider region extends beyond these, also including parts of northern Telangana, western Odisha and southern Uttar Pradesh.
The region is part of the northern Deccanplateau, with an average height of about 600–700 metres. Much of it is rugged and hilly. Geologically it is mostly Pre-Cambrian rock, with some areas dated to Permian and Triassic periods. Part of it is overlaid with alluvium, and in the west it is overlaid with the igneous rocks of the Deccan Traps.
The climate is hot and semi-arid. The natural vegetation is dry monsoon forest, or monsoon scrub forest. Large parts of it are still forest, and it contains several national parks, including tiger populations.
Gondwana has a relatively high proportion of peoples of the "scheduled tribes" of India, which include the Gonds. The scheduled tribes are recognised as economically and socially disadvantaged. They form a majority of the population in many districts.
Gonds are followers of koyapunem (nature based religion).
They are accustomed by their own racial culture based on the nature and according that they are accustomed by the 750 family name as totam (gotra) and 33 kotam (division)

आदिवासीब्राजील के कयोपो (Kayapo tribe) आदिवासियों के मुखियासामान्यत: "आदिवासी" (ऐबोरिजिनल) शब्द का प्रयोग किसी भौगोलिक क्षेत्र के उन निवासियों के लिए किया जाता है जिनका उस भौगोलिक क्षेत्र से ज्ञात इतिहास में सबसे पुराना सम्बन्ध रहा हो। परन्तु संसार के विभिन्न भूभागों में जहाँ अलग-अलग धाराओं में अलग-अलग क्षेत्रों से आकर लोग बसे हों उस विशिष्ट भाग के प्राचीनतम अथवा प्राचीन निवासियों के लिए भी इस शब्द का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, "इंडियन" अमरीका के आदिवासी कहे जाते हैं और प्राचीन साहित्य में दस्यु, निषाद आदि के रूप में जिन विभिन्न प्रजातियों समूहों का उल्लेख किया गया है उनके वंशज समसामयिक भारत में आदिवासी माने जाते हैं। आदिवासी के समानार्थी शब्‍दों में ऐबोरिजिनलइंडिजिनसदेशजमूल निवासीजनजातिवनवासीजंगलीगिरिजनबर्बर आदि प्रचलित हैं। इनमें से हर एक शब्‍द के पीछे सामाजिक व राजनीतिक संदर्भ हैं।अधिकांश आदिवासी संस्कृति के प्राथमिक धरातल पर जीवनयापन करते हैं। वे सामन्यत: क्षेत्रीय समूहों में रहते हैं और उनकी संस्कृति अनेक दृष्टियों से स्वयंपूर्ण रहती है। इन संस्कृतियों में ऐतिहासिक जिज्ञासा का अभाव रहता है तथा ऊपर की थोड़ी ही पीढ़ियों का यथार्थ इतिहास क्रमश: किंवदंतियों और पौराणिक कथाओं में घुल मिल जाता है। सीमित परिधि तथा लघु जनसंख्या के कारण इन संस्कृतियों के रूप में स्थिरता रहती है, किसी एक काल में होनेवाले सांस्कृतिक परिवर्तन अपने प्रभाव एवं व्यापकता में अपेक्षाकृत सीमित होते हैं। परंपराकेंद्रित आदिवासी संस्कृतियाँ इसी कारण अपने अनेक पक्षों में रूढ़िवादी सी दीख पड़ती हैं। उत्तर और दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, एशिया तथा अनेक द्वीपों और द्वीपसमूहों में आज भी आदिवासी संस्कृतियों के अनेक रूप देखे जा सकते हैं।

भारत के आदिवासी

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भारत में अनुसूचित आदिवासी समूहों की संख्या 700 से अधिक है। सन् 1951 की जनगणना के अनुसार आदिवासियों की संख्या 1,91,11,498 थी जो 2001 की जनगणना के अनुसार 8,43,26,240 हो गई। यह देश की जनसंख्या का 8.2 प्रतिशत है।प्रजातीय दृष्टि से इन समूहों में नीग्रिटो, प्रोटो-आस्ट्रेलायड और मंगोलायड तत्व मुख्यत: पाए जाते हैं, यद्यपि कतिपय नृतत्ववेत्ताओं ने नीग्रिटो तत्व के संबंध में शंकाएँ उपस्थित की हैं। भाषाशास्त्र की दृष्टि से उन्हें आस्ट्रो-एशियाई, द्रविड़ और तिब्बती-चीनी-परिवारों की भाषाएँ बोलनेवाले समूहों में विभाजित किया जा सकता है। भौगोलिक दृष्टि से आदिवासी भारत का विभाजन चार प्रमुख क्षेत्रों में किया जा सकता है : उत्तरपूर्वीय क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, पश्चिमी क्षेत्र और दक्षिणी क्षेत्र।उत्तर पूर्वीय क्षेत्र के अंतर्गत हिमालय अंचल के अतिरिक्त तिस्ता उपत्यका और ब्रह्मपुत्र की यमुना-पद्या-शाखा के पूर्वी भाग का पहाड़ी प्रदेश आता है। इस भाग के आदिवासी समूहों में गुरूंग, लिंबू, लेपचा, आका, डाफला, अबोर, मिरी, मिशमी, सिंगपी, मिकिर, राम, कवारी, गारोखासीनागकुकी, लुशाई, चकमा आदि उल्लेखनीय हैं।मध्यक्षेत्र का विस्तार उत्तर-प्रदेश के मिर्जापुर जिले के दक्षिणी ओर राजमहल पर्वतमाला के पश्चिमी भाग से लेकर दक्षिण की गोदावरी नदी तक है। संथालमुंडामाहली,उरांव, हो, भूमिज, खड़िया, बिरहोरजुआंग, खोंड, सवरा, गोंडभील, बैगा, कोरकू, कमार आदि इस भाग के प्रमुख आदिवासी हैं।पश्चिमी क्षेत्र में भील, मीणा, ठाकूर, कटकरी आदि आदिवासी निवास करते हैं। मध्य पश्चिम राजस्थान से होकर दक्षिण में सह्याद्रि तक का पश्चिमी प्रदेश इस क्षेत्र में आता है। गोदावरी के दक्षिण से कन्याकुमारी तक दक्षिणी क्षेत्र का विस्तार है। इस भाग में जो आदिवासी समूह रहते हैं उनमें चेंचू, कोंडा, रेड्डी, राजगोंड, कोया, कोलाम, कोटा, कुरूंबा, बडागा, टोडा, काडर, मलायन, मुशुवन, उराली, कनिक्कर आदि उल्लेखनीय हैं।नृतत्ववेत्ताओं ने इन समूहों में से अनेक का विशद शारीरिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अध्ययन किया है। इस अध्ययन के आधार पर भौतिक संस्कृति तथा जीवनयापन के साधन सामाजिक संगठन, धर्म, बाह्य संस्कृति, प्रभाव आदि की दृष्टि से आदिवासी भारत के विभिन्न वर्गीकरण करने के अनेक वैज्ञानिक प्रयत्न किए गए हैं। इस परिचयात्मक रूपरेखा में इन सब प्रयत्नों का उल्लेख तक संभव नहीं है। आदिवासी संस्कृतियों की जटिल विभिन्नताओं का वर्णन करने के लिए भी यहाँ पर्याप्त स्थान नहीं है।यद्यपि प्राचीन काल में आदिवासियों ने भारतीय परंपरा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया था और उनके कतिपय रीति रिवाज और विश्वास आज भी थोड़े बहुत परिवर्तित रूप में आधुनिक हिंदू समाज में देखे जा सकते हैं, तथापि यह निश्चित है कि वे बहुत पहले ही भारतीय समाज और संस्कृति के विकास की प्रमुख धारा से पृथक् हो गए थे। आदिवासी समूह हिंदू समाज से न केवल अनेक महत्वपूर्ण पक्षों में भिन्न है, वरन् उनके इन समूहों में भी कई महत्वपूर्ण अंतर हैं। समसामयिक आर्थिक शक्तियों तथा सामाजिक प्रभावों के कारण भारतीय समाज के इन विभिन्न अंगों की दूरी अब क्रमश: कम हो रही है।आदिवासियों की सांस्कृतिक भिन्नता को बनाए रखने में कई कारणों का योग रहा है। मनोवैज्ञानिक धरातल पर उनमें से अनेक में प्रबल "जनजाति-भावना" (ट्राइबल फीलिंग) है। सामाजिक-सांस्कृतिक-धरातल पर उनकी संस्कृतियों के गठन में केंद्रीय महत्व है। असम के नागा आदिवासियों की नरमुंडप्राप्ति प्रथा बस्तर के मुरियों की घोटुल संस्था, टोडा समूह में बहुपतित्व, कोया समूह में गोबलि की प्रथा आदि का उन समूहों की संस्कृति में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है। परंतु ये संस्थाएँ और प्रथाएँ भारतीय समाज की प्रमुख प्रवृत्तियों के अनुकूल नहीं हैं। आदिवासियों की संकलन-आखेटक-अर्थव्यवस्था तथा उससे कुछ अधिक विकसित अस्थिर और स्थिर कृषि की अर्थव्यवस्थाएँ अभी भी परंपरास्वीकृत प्रणाली द्वारा लाई जाती हैं। परंपरा का प्रभाव उनपर नए आर्थिक मूल्यों के प्रभाव की अपेक्षा अधिक है। धर्म के क्षेत्र में जीववाद, जीविवाद, पितृपूजा आदि हिंदू धर्म के समीप लाकर भी उन्हें भिन्न रखते हैं।आज के आदिवासी भारत में पर-संस्कृति-प्रभावों की दृष्टि से आदिवासियों के चार प्रमुख वर्ग दीख पड़ते हैं। प्रथम वर्ग में पर-संस्कृति-प्रभावहीन समूह हैं, दूसरे में पर-संस्कृतियों द्वारा अल्पप्रभावित समूह, तीसरे में पर-संस्कृतियों द्वारा प्रभावित, किंतु स्वतंत्र सांस्कृतिक अस्तित्ववाले समूह और चौथे वर्ग में ऐसे आदिवासी समूह आते हैं जिन्होंने पर-संस्कृतियों का स्वीकरण इस मात्रा में कर लिया है कि अब वे केवल नाममात्र के लिए आदिवासी रह गए हैं।कमार दम्पत्ति खेत से लौटते हुए

भारत के प्रमुख आदिवासी समुदाय

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आदिवासी (भारतीय)उडी़सा के जनजातीय कुटिया कोंध समूह की एक महिलाआदिवासी नृत्यआदिवासियों का अपना धर्म है। ये प्रकृति पूजक हैं और जंगल, पहाड़, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। आधुनिक काल में जबरन बाह्य संपर्क में आने के फलस्वरूप इन्होंने हिंदू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म को भी अपनाया है। अंग्रेजी राज के दौरान बड़ी संख्या में ये ईसाई बने तो आजादी के बाद इनके हिूंदकरण का प्रयास तेजी से हुआ है। परंतु आज ये स्वयं की धार्मिक पहचान के लिए संगठित हो रहे हैं और भारत सरकार से जनगणना में अपने लिए अलग से धार्मिक कोड की मांग कर रहे हैं।भारत में 1871 से लेकर 1941 तक की जनगणना में आदिवासी को अन्‍य धमों से अलग धर्म में गिना गया है, जिसे AborginesAborigionalAnimistTriabal ReligionTribes आदि कहा गया है।आदिवासी की गणना अलग ग्रुप में की गई है, लेकीन 1951 की जनगणना से आदिवासी को Schedule Tribe बना कर अलग गिनती करना बन्‍द कर दिया गया है।माना जाता है कि हिंदुओं के देव भगवान शिव भी मूल रूप से एक आदिवासी देवता थे लेकिन आर्यों ने भी उन्हें देवता के रूप में स्वीकार कर लिया।भारत में आदिवासियों को दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है- अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित आदिम जनजाति।बहुत से छोटे आदिवासी समूह आधुनिकीकरण के कारण हो रहे पारिस्थितिकी पतन के प्रति काफी संवेदनशील हैं। व्यवसायिक वानिकी और गहन कृषि दोनों ही उन जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं जो कई शताब्दियों से आदिवासियों के जीवन यापन का स्रोत रहे थे।

  • आदिवासी शब्द दो शब्दों आदि और वासी से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। भारत की जनसंख्या का 8.6% (10 करोड़) जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। पुरातन लेखों में आदिवासियों को अत्विका और वनवासी भी कहा गया है (संस्कृत ग्रंथों में)। संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति पद का उपयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में,((धनुहार/धनवार)),संथालगोंडमुंडा, खड़िया, होबोडोभीलखासीसहरियागरासियामीणाउरांवबिरहोर आदि हैं।

    महात्मा गांधी ने आदिवासियों को गिरिजन (पहाड़ पर रहने वाले लोग) कह कर पुकारा है। जिस पर वामपंथी मानविज्ञानियों ने सवाल उठाया है कि क्‍या मैदान में रहने वालों को मैदानी कहा जाता है? आदिवासी को दक्षिणपंथी लोग वनवासी या जंगली कहकर पुकारते हैं। इस तरह के नामों के पीछे बुनियादी रूप से यह धारणा काम कर रही होती है कि आदिवासी देश के मूल निवासी हैं या नहीं तथा आर्य यहीं के मूल निवासी हैं या बाहर से आए हैं? जबकि निश्चित रूप से आदिवासी ही भारत के मूलनिवासी हैं।

    आमतौर पर आदिवासियों को भारत में जनजातीय लोगों के रूप में जाना जाता है। आदिवासी मुख्य रूप से भारतीय राज्यों उड़ीसामध्य प्रदेशछत्तीसगढ़राजस्थानगुजरातमहाराष्ट्रआंध्र प्रदेशबिहारझारखंडपश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक है जबकि भारतीय पूर्वोत्तर राज्यों में यह बहुसंख्यक हैं, जैसे मिजोरम। भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में " अनुसूचित जनजातियों " के रूप में मान्यता दी है। अक्सर इन्हें अनुसूचित जातियों के साथ एक ही श्रेणी " अनुसूचित जातियों और जनजातियों " में रखा जाता है जो कुछ सकारात्मक कार्रवाई के उपायों के लिए पात्र है।





    आदिवासी झण्‍डा



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    आदिवासी के झण्‍डेआदिवासी समाज के लोग अपने धार्मिक स्‍थलों, खेताें, घरों आदि में एक विशिष्‍ट प्रकार का झण्‍डा लगाते है, जो अन्‍य धमों के झण्‍डों से अलग होता है। आदिवासी झण्‍डें में सूरज, चांद, तारे इत्‍यादी सभी प्रतिक बने हुये होते है। आदिवासी के झण्‍डें सभी रंग के होते है। वो किसी रंग विशेष से बंधे हुये नही होते है। आदिवासी प्रक़ति पूजक होते है। वो प्रकति में पाये जाने वाले स्‍ाभी जीव, जन्‍तु, पहाड, नदियां, नाले, खेत इन सभी जीवीत वस्‍तुओं की पूजा करते है। आदिवासी मानते है कि all living things have a soul अर्थात प्रकति की हर एक वस्‍तु में जीवन होता है। भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्‍व के आदिवासी कहे जाने वाले आदिवासीयों के झण्‍डों में सूरज, चांद, तारे आदि कहीं ना कहीं बने हूये होते है।



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जीवन परिचय