आदिवासियों हेतु अन्तर्राष्ट्रीय कानून

आदिवासियों  हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानून 

 आदिवांसियों  पर  लंबे अर्से से अत्याचार होते आ रहे हैं  जिस  वजह से आदिवासी समाज  की  मुख्यधारा  से जुड़ नहीं  पाये  और उन्हें मुलभूत सुविधाओं  का  फायदा निहीं मिल पाया |अनेक बार राज्य सरकार भी  अपने  अनचाहे  कानूनों  की वजह से  शोषणकर्ता  के रूप  में सामने आती हैं | इस वजह से  सयुंक्त राष्ट्र संघ  द्वारा  आदिवासियों  के  अधिकारों  को  सुरक्षित  करने और  उनके परम्परा और संस्कृति  को सहेजने  के लिए  सयुंक्त राष्ट्र घोषणा  पत्र द्वारा  कानून बनाया गया  हैं | ताकि  आदिवासियों  का वजूद  बरक़रार  रहे |

                   सयुंक्त  राष्ट्र  घोषणा  में 'इंडीजिनीयस पीपल ('INDIGENOUS PEOPLE )  शब्द  का इस्तेमाल  किया गया हैं  जिसका अर्थ देशी लोग | देशी लोंगो से प्राय  उन  व्यक्तियों से हैं  जो किसी देश के  ऐतिहासिक रूप से  मूल निवासी  हैं |  विश्व के अधिकांश हिस्सों  आदिवासी मूल निवासी लोग  उस राज्य में  रहने वाली शेष.

 जनसंख्या   के ही  समान अपने मौलिक अधिकारों का  प्रयोग नहीं कर पाते | अपनी निर्धनता  एवं अशिक्षा  के कारण  वर्तमान समय में वे  समाज के दुर्बल  वर्ग कहे जाते हैं |सयुंक्त राष्ट्र  घोषणा  पत्र  में आदिवासी लोंगो  के  हितों  की रक्षा  के लिए  अनेक प्रावधान  दिये गये हैं  जिनमे से कुछ  महत्वपूर्ण  बिन्दुओं  के बारे में  यहाँ जानकारी  दी जा रही हैं |

  1.  आदिवासियों के व्यक्तिगत  तौर (किसी भी व्यक्ति  को ) सामूहिक रूप से समस्त मानवाधिकारों  एवं मूल  स्वतंत्रताओं का  पूर्ण उपयोग करने का  अधिकार हैं |                                (अनुच्छेद 1 )
  2. आदिवासी तथा  समस्त मानव स्वतंत्र  और समान हैं  तथा  उन्हें आदिवासी होने के कारण  मिले अधिकारों का  इस्तेमाल करने में  किसी भी तरह के  बेदभाव  से मुक्त रहने का अधिकार हैं |       (अनुच्छेद 2   )
  3. आदिवासियों को  आत्मनिर्णय   का अधिकार हैं | इस अधिकार से वे  अपने समाज और अपने क्षेत्र ( जिन क्षेत्रों में  आदिवासी निवास करते हैं ) की   राजनीतिक स्तर स्वतंत्र रूप से तय कर सकते हैं | (अनुच्छेद 3 )
  4. आदिवासियों को  अपने आन्तरिक और  स्थानीय मामलों में स्वायतता  अथवा स्वयं की स्वायत  सरकार  स्थापित करने का अधिकार  हैं |उनके स्वायत क्रियाकलाप  के लिए  वित्तीय साधन जुटाने का अधकार भी होगा | ( अनुच्छेद 4 )
  5.  आदिवासी को अपनी विशेष  राजनितिक ,क़ानूनी ,आर्थिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थानों को बनाये रखने ,उनका पोषण करने और  उन्हें मजबूत  बनाने का अधिकार होगा | (अनुच्छेद 5 )
  6. प्रत्येक आदिवासी व्यक्ति को  राष्ट्रीयता का अधिकार प्राप्त होगा | (अनुच्छेद 6 )
  7. आदिवासियों को  जीवन ,शारीरिक और मानसिक  निष्ठा स्वतंत्रता  और  सुरक्षा का अधिकार होगा | उन्हें विशिष्ट  लोंगो के भाँती  स्वतंत्रता ,शांति  और सुरक्षा के  साथ जीने का सामूहिक अधिकार होगा और उनके प्रति किसी भी तरह के नरसंहार  या किसी अन्य  प्रकार  की हिंसक  कार्यवाही  नहीं की जा सकेगी  जिनमे किसी समूह के  बच्चों  को जबरन  किसी अन्य समूह  में शामिल  कराना  शामिल हैं | (अनुच्छेद 7 )
  8. आदिवासियों को अधिकार होगा  कि  उनकी संस्कृति का जबरन  विलय अथवा  नष्ट न किया जाए | (अनुच्छेद 8 )
  9.  आदिवासियों  को  उनकी क्षेत्रीयता  या भूमि से  बलपूर्वक  हटाया नहीं जा  सकेगा | (अनुच्छेद 10 )
  10. आदिवासियों को अपनी  सांस्कृतिक  परंपराएँ  और रीतिरिवाज  अपनाने और उन्हें अधिक सशक्त  बन्नने का अधिकार  हैं |राज्य आदिवासियों  के  कानूनों , परंपराओं  और रीतिरिवाजों  के उल्लंघन  से संबंधित  किसी भी सिकायत को ,उनके ही सहयोग से  दूर करने के उद्देश्य  से  सिकायत निवारण  तंत्र उपलब्ध कराएगा  |(अनुच्छेद 11 )
  11. आदिवासी लोगों को अपनी  आध्यात्मिक और धार्मिक  प्रथाओं , धार्मिक परम्पराओं ,रीती रिवाजो  और समारोहों  को  मनाने  विकसित करने  और  इनके बारे में   पढ़ाने  सिखाने का अधीकार होगा , साथ ही पूजा की चीजों  का प्रयोग एवं   नियंत्रित करने का भी  अधिकार होगा |राज्य (सरकार ) इन तक पहुँच  उपलब्ध कराने  और प्रत्यार्पित  कराने ,आदिवासियों  के सहयोग  से प्रभावी तंत्र  विकसित करेगा  | (अनुच्छेद 12 )
  12. आदिवासियों को अधिकार होगा  कि वे अपने इतिहास ,बोली  भाषाओं  मौखिक सिद्धांत ,लेखन प्रणालियों  और साहित्य को सशक्त  बनाने ,उनका प्रयोग करने और अपनी भावी पीढ़ी को सौंफ सके  तथा समुदायों ,स्थानों  और व्यक्तियों  के परम्परागत  नाम रखे रहें | राज्य प्रभावी उपाय द्वारा  यह सुनिश्चित करेगा  कि राजनितिक ,कानूनी और प्रशसनिक  गतिविधियों को  आदिवासी लोग  समझ  सकें  और जहाँ जरुरत  हो वहाँ दुभाषियों की  अथवा अन्य उपयुक्त  व्यवस्था  की जाए |  (अनुच्छेद १३)
  13. आदिवासियों को   अधिकार हैं की  वे अपनी भाषा में  पढ़ने -पढ़ाने  की अपनी  सांस्कृतिक  पद्धतियों के अनुरूप  उपयुक्त तरीके से  शिक्षा उपलब्ध करनेवाली  शिक्षा प्राणालीयों  और संस्थान  स्थापित करके  उनका नियंत्रण भी अपने पास  ही रखें |राज्य आदिवासियों के सहयोग से , सभी आदिवासियों खासकर  बच्चों के लिए आदिवासी सांस्कृति  के अनुरूप  और अपनी भाषा  में शिक्षा देने के लिए  यथासंभव  प्रयास करेगा | (अनुच्छेद 14 )
  14. आदिवासियों को अपनी  संस्कृतियों ,परम्पराओं ,इतिहासों  और  आंकाक्षाओं  की गरिमा और  विवधता बनायें  रखने का अधिकार  हो  ,या  जो उपयुक्त रूप से शिक्षा और सार्वजनिक  जानकारी को उल्लेख  करेगा  | (अनुच्छेद 15 )
  15. आदिवासियों को अधिकार होगा की  उनके अपने तौर -तरीकों से  उनके ही द्वारा  चुने गए प्रतिनिधि  निर्णय प्रक्रिया में  शामिल किए जा सकते हैं , और साथ ही  वे अपनी  स्वंय की निर्णय प्रक्रिया  भी स्थापित  कर सकते हैं  (अनुच्छेद 18 )
  16. राज्य संबंद्ध आदिवासियों  से उनके  ही प्रतिनिधि  संस्थानों के जरिए  पूरी ईमानदारी  से परामर्श और सहयोग करेंगें  ताकि उनको  प्रभावित करनेवाले  विधायी अथवा  प्रशासनिक  उपाय  लागू करने से पहले  उनकी स्वतंत्र और  लिखित पूर्व सहमती  ली जा सकें |(अनुच्छेद 19 )
  17. आदिवासियों को  परम्परागत  रूप से  अधिकृत (कब्ज़ा ) और प्रयोग की  जा रही जमीनों ,भूखंडों ,जलक्षेत्रों  और तटीय सागरों  तथा  अन्य  संसाधनों  पर  अपना विशिष्ट  आध्यात्मिक  संबंध  बनाये  रखने  और उसे मजबूत  करने का अधिकार  हैं |(अनुच्छेद 25 )
  18. राज्य आदिवासी लोगों  की  सहमती एवं सहयोग से  एक निष्पक्ष  प्रक्रिया  स्थापित करेंगे  जिसमे आदिवासियों के कानूनों ,परम्पराओं ,रीती- रिवाजो   और जमीन  की पट्टेदारी  व्यवस्थाओं को उचित  तरीके  से  मान्यता   दी   जायेगी   तथा आदिवासियों के जमीनों , उनके  क्षेत्रों और  संसाधनो  पर  उनके अधिकारों को  मान्यता देकर  राज्य द्वारा स्वीकार किया जायेगा , जिनमे वे जमीने ,क्षेत्र और संसाधन भी सामिल हैं | जिनपर परम्परा  से ही  आदिवासियों का अधिकार ,कब्ज़ा इस्तेमाल  या नियंत्रण   रहा हैं |(अनुच्छेद 27 )
  19.  आदिवासियों के देशों या क्षेत्रों  में सैनिक गतिविधियाँ  तब तक नहीं होंगीं  जब तक की व्यापक जनहित  के कारण  अथवा अपनी  स्वतंत्र सहमती  से  आदिवासी स्वंय  इस आशय का अनुरोध न करे | सैनिक  गतिविधियाँ  इस्तेमाल  करने से पहले  राज्य आदिवासियों के साथ  मिलकर उपयुक्त प्रक्रिया  के जरिये  प्रभावी क्षेत्रों  के लोगों के साथ  व्यापक  एवं  प्रभावी  विचार  विमर्श  करेंगे | (अनुच्छेद 30 )
  20.  आदिवासियों को राज्यों  या उनके  उतराधिकारियों  के साथ  की गई संधियों ,समझौतों  और  अन्य रचनात्मक  व्यवस्थाओं  को मान्यता दिलाने ,उनका परिपालन  कराने  और  उन्हें लागू कराने का अधिकार  हैं | (अनुच्छेद 37 )
  21. आदिवासियों  के साथ परामर्श  और उनके साथ सहयोग से  इस घोषणा  के उद्देश्य पूर्ति  के लिए  विधायी  उपायों  सहित  राज्य सभी  उपयुक्त  प्रयास  करेंगे | (अनुच्छेद 38 )
२२ . आदिवासियों को अधिकारी   होगा की  वे इस घोषणा में  उल्लेखित  अधिकारों को इस्तेमाल  कर सकने  के उद्देश्य  से  राज्यों से  आर्थिक एवं तकनीकी  सहायता   प्राप्त कर  सकें  और  इसके  लिए  अन्तर्राष्ट्रीय  सहयोग भी ले सकें |( अनुच्छेद 39 )

        आदिवासियों की हितों और  अधिकारों की रक्षा  हेतु इसी  प्रकार  से राष्ट्रिय एवं  अंतर्राष्ट्रीय  कानूनी प्रावधान  बने हुए हैं  परंतु  यथार्थ में देखा  जाता हैं की  आदिवासियों को इन कानूनों का लाभ नहीं मिल पाता   और  वे निरंतर शोषण का  शिकार होते रहते हैं| इसका कारण हैं कि  ज्यादातर लोगों  को  इन प्रावधानों की जानकारी नहीं होंती  और  जिन  अधिकारों को इन प्रावधानों  का उपयोग करके  आदिवसियों  के हितो  की रक्षा  का दायित्व  सौंपा जाता हैं  वे कभी इन प्रावधानों  की जानकारी  आदिवासियों को नहीं देते , और आदिवासी लोग  शोषण और अन्याय  का शिकार  होते रहते हैं | 

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